Tuesday 24 April 2012

केंद्र के चार मंत्रियों के इस्तीफे की खबरों गर्माया माहौल


नई दिल्ली। हाल में हुए चुनावों में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद पार्टी संगठन और सरकार में भारी फेरबदल की तैयारी कर रही है। सूत्रों के मुताबिक, 4 केंद्रीय मंत्रियों ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर मंत्री पद छोड़ने की इच्छा जताई है। ये लोग पार्टी के लिए काम करना चाहते हैं। माना जा रहा है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी भी चाहती हैं कि 2014 के चुनावों के लिए पार्टी को और मजबूत बनाया जाए। इन अटकलों के बीच मंगलवार की शाम सोनिया गांधी के घर पर कांग्रेस के सीनियर नेताओं की बैठक हुई।
न्यूज चैनलों में आ रही खबरों के मुताबिक, कांग्रेस के 4 केंद्रीय मंत्रियों ने मंत्री पद छोड़ने की इच्छा जताई है। ये मंत्री हैं जयराम रमेश, वायलार रवि, गुलाम नबी आजाद और सलमान खुर्शीद। इन चारों ने पहले सोनिया गांधी से मुलाकात भी की थी। हालांकि, वायलार रवि ने सोनिया को चिट्ठी लिखने की बात से इनकार किया है।
माना जा रहा है कि यूपी सहित 5 राज्यों के चुनावों और फिर इसके बाद महाराष्ट्र और दिल्ली में हुए स्थानीय निकाय के चुनावों में मिली कांग्रेस को करारी हार से पार्टी को झटका लगा है। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी संगठन को मजबूत करना चाहती हैं। वह चाहती हैं संगठन 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों तक पार्टी और सशक्त बनकर सामने आए। सोनिया की इसी इच्छा को देखते हुए इन 4 मंत्रियों ने मंत्रीमंडल से इस्तीफा देने की मंशा जताई है।
इस मामले में कांग्रेस के सीनियर नेता ऑस्कर फर्नांडीस का कहना है कि पार्टी संगठन में फेरबदल एक सामान्य बात है।
इन अटकलों के बीच सोनिया गांधी के घर पर पार्टी दिग्गजों की बैठक हुई। बैठक में पी. चिदंबरम, प्रणव मुखर्जी, जयराम रमेश, पवन बंसल, सलमान खुर्शीद आदि शामिल हुए। हालांकि,बैठक के बाद पार्टी की तरफ से कहा गया कि यह सिर्फ संसद में पार्टी की रणनीति पर चर्चा के लिए बैठक बुलाई गई थी।
केंद्र की संप्रग सरकार में बदलाव और कांग्रेस के कम से कम चार मंत्रियों की ओर से इस्तीफा देने की पेशकश से जुड़ी खबरों से मंगलवार को अटकलबाजी का बाजार गर्म रहा। मीडिया में ये खबरें आ रही हैं कि जयराम रमेश, सलमान खुर्शीद, गुलाम नबी आजाद और वायलार रवि ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी को लिखा है कि वे सरकार से अलग होकर पार्टी के लिए काम करना चाहते हैं। गौरतलब है कि आजाद पहले से ही कांग्रेस महासचिव के पद पर हैं। उधर प्रवासी मामलों के मंत्री वायलार रवि ने इस तरह का कोई भी पत्र लिखने से इंकार किया और कहा कि वो उस काम से खुश हैं, जिसे वो कर रहे हैं। हालांकी रमेश और खुर्शीद ने आज शाम सोनिया के आवास पर उनसे मुलाकात की और इस मुलाकात में हुई बातचीत के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं मिली है। सूत्रों का कहना है कि कानून और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री खुर्शीद ने पिछले महीने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद ही सोनिया को पत्र लिख कर पार्टी की हार के बाद की स्थिति के बारे में बताया था।

Tuesday 6 March 2012

प्राकृतिक जीवन अपनाएं और स्वस्थ रहें



- अरविंद शीले

प्राकृतिक चिकित्सा का मान्य सिद्धांत है कि प्रकृति की अवहेलना करने से ही रोग होते हैं और यदि शरीर स्वस्थ है तो रोग होंगे ही नहीं. प्राकृतिक चिकित्सा में मनुष्य के शरीर की जीवनी शक्ति बढ़ाकर रोग को समाप्त कर दिया जाता है. चिकित्सा जगत के पितामह हिप्पोक्रेट ने कहा है प्रकृति ठीक करती है, डाक्टर नहीं.

आधुनिक विज्ञान के इस दौर में आज मनुष्य भौतिक साधनों का दास बनकर रह गया है. फ्रिज, एसी, कूलर, पंखा, सोफा, गद्दे, ओवन आदि के उपयोग ने मनुष्य की क्रियाशीलता को नष्ट करते हुए प्रकृति से दूर कर दिया है. निरंतर जूते, चप्पल पहने रहने के कारण पृथ्वी से भी संपर्क कट गया है. यही नहीं प्राकृतिक खाद्य पदार्थों को उबालकर, भूनकर, तलकर उसके शक्तिदायक मूल स्वरूप को पूर्ण रूप से मिटाकर केवल पेट भरा जा रहा है. इसके बाद पोषक तत्व जुबान के स्वाद की खातिर पूरे शरीर को मिल ही नहीं पाते और अंतत: मनुष्य का शरीर रोगों का घर होकर रह जाता है. लेकिन मनुष्य रोगी होने के बावजूद भी प्रकृति की शरण में नहीं लौटता. वह जाता है एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेदिक तथा अन्य पैथियों की शरण में. वह समझ ही नहीं पाता कि रोग होने पर यदि वह नियमित सोना-उठना और आहार-विहार में आंशिक परिवर्तन करना भी शुरु कर दे तो शरीर में सुधार स्वमेव प्रारंभ हो जाता है. यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि प्रकृति के अनुकूल प्राकृतिक चिकित्सा शरीर को नैसर्गिक रूप से स्व्स्थ करना प्रारंभ करती है तथा रोग स्वमेव समप्त होना शुरु हो जाते हैं. प्राकृतिक चिकित्सा का मान्य सिद्धांत है कि प्रकृति की अवहेलना करने से ही रोग होते हैं और यदि शरीर स्वस्थ है तो रोग होंगे ही नहीं. प्राकृतिक चिकित्सा में मनुष्य के शरीर की जीवनी शक्ति बढ़ाकर, शरीर- रक्त को शुद्ध करते हुए, स्वस्थ करते हुए रोगों को शरीर से बाहर कर दिया जाता है. शरीर स्वस्थ बनेगा ही तब जब अस्वस्थता बाहर हो जाएगी.

प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान यह मानता है और यह परीक्षण, अनुसंधान से सिद्ध भी हो चका है कि सभी रोग एक ही हैं. चाहे उनका नाम कैंसर, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, ह्दय रोग कुछ भी क्यों न हो. शरीर की अस्वस्थता मात्र रोग है. चाहे किसी भी बीमारी से शरीर अस्वस्थ हुआ हो, प्रकृतिक चिकित्सा केवल उसी रोग का इलाज न करते हुए पूरे शरीर को स्वस्थ कर देती है. प्राकृतिक चिकित्सा शरीर के आंतरिक तथा बाह्य रोगों को पूर्ण स्वस्थ करते हुए शरीर को इतना सबल बना देती है कि आगे भी जीवन में कोई रोग का आक्रमण नहीं हो पाता लेकिन इतना अवश्य है कि जीवन भर प्राकृतिक नियमों का पालन करना होता है और यह नियम भी कठिन नहीं है. सोने, उठने, खाने-पीने, व्यायाम, टहलने आदि में सुधार करते हुए स्बस्थ शरीर बनाया जा सकता है. यदि सही समय पर सोया जाए, उठा जाए, खाद्य पदार्थों को मूल स्वरूप में खाया जाए, व्यायाम किया जाए तो समझिए आप स्वस्थ हो गए.

अब प्रश्न यह उठता है कि यदि आप किसी रोग का शिकार हो गए हैं तो प्रकृतिक चिकित्सा का ही सहारा क्यों लें? इसका सीधा सरल जवाब है कि इस चिकित्सा का शरीर पर कोई प्रतिकूल असर (बाई इफेक्ट) नहीं होता एवं रोग को दबाया न जाकर जड़-मूल से समाप्त किया जाता है. जबकि अन्य पैथियों में रोग को दवा, गोलियों क सहारे तुरंत दबा तो दिया जाता है परंतु रोग का कारण शरीर में मौजूद ही रहता है जो समय पाकर पुन: उसी रूप में या अन्य किसी रूप में उभर आता है. फिर दवा-गोली लेना पड़ती है और यह सिलसिला जीवन पर्यन्त चलता ही रहता है. प्राकृतिक चिकित्सा में रोग होने के कारण में न जाकर सीधे शरीर के स्वस्थ करने की प्रक्रिया अपनाई  जाती है और इस प्रक्रिया के फलस्वरूप रोग नाम की चीज  शरीर से बाहर हो जाती है. प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी, पानी, हवा, धूप के सरल प्रयोग से विकट से विकट रोग को शरीर से निकाल दिया जाता है. फिर भी प्रश्न उठता है कि केवल मिट्टी, पानी, हवा और धूप से शरी के रोग को कैसे भगाया जा सकता है. तो इसका भी सीधा सरल जवाब है कि यह शरीर भी इन्हीं पंचतत्व के सहारे गतिशील है. सारी गडबड़ तब शुरू होती है कि जिस मिट्टी, पानी, धूप, हवा का यह शरीर है, उसे इन्हीं चीजों के असंतुलन अर्थात इसके प्रतिकूल बना लिया जाता है और प्रकृति अपने नियमों की अवहेलना के दंडस्वरूप रोग नाम की चीज शरीर को दे देती है. किन्तु प्रकृति इतनी निष्ठुर भी नहीं है कि वह दिया हुआ वापस न ले. बस यदि आप पुन: उसके नियमों के अनुकूल होने लगेंगे तो वह रोग वापस भी ले लेगी. सुबह देर से उठना, उचित मात्रा में पानी न पीना, धूप से बचना, गलत ढंग से सांस लेना, जब जी में आए तब खाना, कुछ भी खाना ऐसी तमाम जीजें हैं जो प्रकृति के प्रतिकूल जाती हैं और इसका परिणाम हम रोग के रूप में पाते हैं. प्राकृतिक चिकित्सा में उपरोक्त इन्हीं सब तत्वों का संतुलन स्थापित कर शरीर को स्वस्थ कर दिया जाता है और फिर स्वस्थ शरीर में रोग (अस्वस्थता) की गुंजाइश कहां? 

प्राकृतिक चिकित्सा क्या है ?   
       
             
चिकित्सा विज्ञान के पितामह और यूनान के महान चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स ने कहा है कि प्रकृति रोगी को ठीक करती है, चिकित्सक नहीं. प्राकृतिक चिकित्सा रोगी के स्वास्थ्य का निर्माण करती है, जो प्राकृतिक रूप से उपलब्ध मिट्टी, पानी, धूप, वायु के द्वारा बीमारी के मूल कारण को दूर कर देती है. यह केवल स्वस्थ शरीर का निर्माण ही नहीं करती बल्कि शरीर के अन्दर जीवनी शक्ति को प्रबलता प्रदान करते हुए स्वस्थ जीवन जीने का मार्ग भी प्रशस्त करती है. प्राकृतिक चिकित्सा ने जीवन जीने की कला और विज्ञान में संपूर्ण क्रांति ला दी है.

प्राकृतिक चिकित्सा ने सिद्ध किया है कि रोग होना शरीर की अपनी स्वस्थ होने की प्रक्रिया है. यदि सर्दी, जुकाम, बुखार जैसे साधारण या लकवा, मधुमेह, गठिया जैसे गंभीर रोग होते हैं तो यह शरीर द्वारा दिये गये संकेत हैं कि शरीर में कहीं न कहीं गंदगी, विषैले पदार्थ जमा हो गए हैं और शरीर इन्हें इन रोगों द्वारा बाहर निकालना चाहता है. प्राकृतिक चिकित्सा यहीं काम करती है. यह शरीर में जमा इसी विषैले पदार्थ, विजातीय पदार्थ को मिट्टी, पानी, धूप, व्यायाम, योग, आहार, विहार आदि के समुचित प्रयोग से बाहर निकाल देती है. शरीर में स्वयं में यह शक्ति होती है कि वह अपने आप को ठीक कर सके. शरीर में जीवनी शक्ति जैसी चीज होती है, जो रोग होने पर कमजोर पड़ जाती है. प्राकृतिक चिकित्सा इस जीवनी शक्ति को प्रबल बना देती है.

प्राकृतिक चिकित्सा को यूं तो आधुनिक युग में अपनी पहचान और विज्ञान सम्मत मान्यता मिल रही है. लेकिन है यह अति प्राचीन.     इतिहास में प्रमाण मिलते हैं कि रोम, मिस्र, ग्रीस में पानी, धूप आदि से इलाज किया जाता था. भारत में भी सिंधु घाटी सभ्यता में मोहनजोदड़ो आदि में खुदाई के दौरान स्नानागार आदि मिले हैं जो स्वस्थ शरीर के निर्माण में पानी के महत्व को प्रमाणित करते हैं.

आधुनिक युग में जो प्रमाण मिलते हैं उनमें 1822 में विंसेंट प्रिस्नीज ने जर्मनी में अपना जल चिकित्सा पर आधारित अस्पताल खोला था जहां सफलतापूर्वक रोगियों का इलाज किया जाता था. बगैर एलोपैथी दवाओं का यह एक ऐसा प्रयोग था जिससे अमेरिका सहित कई देशों के चिकित्सकों ने आश्चर्य के साथ देखा. बाद में कई एलोपैथिक डाक्टर प्रिस्नीज के शिष्य बने. कई ऐलोपैथिक डाक्टर ऐलोपैथी के साथ-साथ प्राकृतिक चिकित्सा का भी सहारा लेने लगे. प्रिस्नीज के बाद कई चिकित्सकों ने जल चिकित्सा के साथ-साथ मिट्टी, धूप और आहार-उपवास आदि को भी इसमें अपने अनुभव के साथ जोड़ दिया. आज जो प्राकृतिक चिकित्सा का विस्तृत रूप हम देख रहे हैं, उसे यहां तक लाने में फादर क्नाइप, लुई कूने, एडोल्फ जस्ट, हेनरी लिंडलहार आदि ने अपना पूरा जीवन लगा दिया.

प्राकृतिक चिकित्सा में यह मान्यता है कि प्रकृति के नियमों के अनुसार मानव जन्म स्वस्थ शरीर के साथ होता है. यदि मानव प्राकृतिक नियमों के अनुरूप अपना जीवन गुजारे तो कभी अस्वस्थ ही न हो. बीमारी की जड़ में ही यह है कि हम प्रकृति के नियमों के प्रतिकूल चलने लग जाते हैं और बीमार पड़ जाते हैं. प्राकृतिक चिकित्सा प्राकृतिक नियमों के अनुकूल चलना सिखाती है. स्वस्थ जीवन की राह बताती है. कैसे रहें, क्या खाएं, यह बताती है. शरीर को प्राकृतिक तरीकों जैसे, स्वच्छ हवा, सूर्य के तेज का उपयोग, सही व्यायाम, सही योग, सही आहार, द्वारा मनुष्य को स्वस्थ जीवन जीने की कला सिखाती है. प्राकृतिक चिकित्सा में एक ताकत और है कि यह मन से भी रोग को निकाल देती है. जो लोग प्राकृतिक चिकित्सा से स्वस्थ हो चुके हैं, वे यह बात अच्छी तरह से समझते हैं. प्राकृतिक चिकित्सा की यह भी विशेषता है कि जो व्यक्ति एक बार अपना इलाज करा लेता है, वह दूसरों को सलाह देने योग्य हो जाता है. इसका कारण सिर्फ इतना है कि प्राकृतिक चिकित्सा बिल्कुल सरल है. मिट्टी, पानी, धूप, हवा सब नि:शुल्क है. प्राकृतिक चिकित्सा में शर्त सिर्फ इतनी है कि व्यक्ति को स्वयं ही अपने इलाज के लिए धैर्य के साथ समर्पित होना पड़ता है. इसमें ऐलोपैथी जैसा नहीं है कि तुरंत आराम मिल जाए. दरअसल ऐलोपैथी में रोग को दबाया जाता है. जैसे सिरदर्द, सर्दी, जुखाम, बुखार को गोलियों के सहारे दबा दिया जाएगा. लेकिन इनका कारण शरीर में मौजूद रहेगा. जो बाद में कोई और रोग बनकर उभरेगा. प्राकृतिक चिकित्सा में इस कारण को ही शरीर और मन से मिटा दिया जाता है.

                  प्राकृतिक चिकित्सा की उत्पत्ति एवं विकास

                       
प्राकृतिक चिकित्सा की उत्पत्ति का मूल वैदिक काल, आयुर्वेद के पथ्य एवं आहार तथा स्वस्थ वृथा में मिलता है. लेकिन समय के साथ-साथ यह व्यवहार में गौण होते चले गए. बाद में रोग निदान के लिए आयुर्वेद के इसी हिस्से से आहार-विहार और पंचतत्व (अग्नि, वायु, धरा, जल, आकाश) के समुचित संतुलन को अपनाते हुए प्राकृतिक चिकित्सा व्यवहार रूप में विकसित हुई. रोम, ग्रीस और मिस्र में भी प्राकृतिक चिकित्सा किए जाने के प्रमाण मिलते हैं.

यह सही है कि प्राकतिक चिकित्सा का उद्गम भारत देश ही रहा है. लेकिन शून्य की खोज, पुष्पक विमान, विपश्यना आदि की तरह यह हमारे देश से विलुप्त हो गई. इसे पुन: विकसित करने का श्रेय  पश्चिमी देशों के ऐलोपैथिक, होम्योपैथिक डाक्टरों को जाता है. 20वीं सदी की शुरूआत में यह डाक्टर अंग्रेजी दवाओं के साइड इफेक्ट से परेशान थे. इन्होंने ऐलोपैथी के रंग चिकित्सा, मिट्टी, धूप के साथ-साथ ठंडे-गर्म पानी के प्रयोग आदि करना शुरू कर किया. यह लोग उपवास का महत्व भी समझ चुके थे. उपवास के साथ ही आहार पर भी ध्यान दिया जाने लगा. इस तरह आहार चिकित्सा भी प्राकृतिक चिकित्सा में जुड़ गई. इससे रोगियों में आश्चर्यजनक सुधार हुआ. तब इन डाक्टरों ने ऐलोपैथी से तौबा करते हुए पूरी तरह से प्राकृतिक चिकित्सा की ओर रुख कर लिया और गारंटी के साथ रोगियों का इलाज करने लगे. यह डाक्टर इन सूत्रों को समझ गए थे कि शरीर को स्वस्थ करो रोग अपने आप भाग जाएगा.  रोग का कारण सिर्फ एक है और वह है कि विषैले पदार्थ (विजातीय पदार्थ) का शरीर में जमावड़ा. इसे बाहर कर दो तो रोग बाहर हो जाएगा. शरीर में जमा कचरा साफ कर दो तो रोग के लिए जगह ही नहीं रह जाएगी. इन्हीं लोगों के प्रयासों से आज यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि भोजन, टहलना, योग के साथ-साथ मिट्टी, पानी, धूप आदि के उपयोग से किसी भी तरह का रोग शरीर से दूर किया जा सकता है.

पश्चिमी देशों (अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी) में प्रारंभिक रूप से डा. ंिवंसेज प्रिस्नीज, डा. लुई कूने, फादर सेबस्टियन क्नाइप, एडोल्फ जस्ट, डा. हेनरी लिंडलहार, डा. बैबिट, डा. कैलाग, डा. हर्बट एम. शैल्टन आदि प्राकृतिक चिकित्सा की शुरुआत करके कमान संभाले हुए थे. दक्षिण भारत में स्व. श्री कष्णम राजू सन 1930 के आसपास इसे शुरू कर चुके थे. उन्होंने भीमावरम (आंध्रप्रदेश) में छोटे पैमाने पर शुरुआत करते हुए 150 बिस्तर का प्राकृतिक चिकित्सालय भी खोल लिया था. उत्तर भारत में सन 1940 में गोरखपुर में आरोग्य मंदिर (वर्तमान में 200 बिस्तर का अस्पताल) की स्थापना करते हुए उसके संचालक, चिकित्सक के रूप में स्व. श्री विट्ठलदास मोदी के अकथनीय प्रयास रहे. इस समय तक डा. जस्सावाला (मुम्बई), डा. हीरालाल (उत्तरप्रदेश), डा. एस.जे.सिंह और डा. दिलकुश (लखनऊ), डा. बी वेंकटराव, डा. विजयलक्ष्मी (हैदराबाद) आदि अपने-अपने क्षेत्रों में प्राकृतिक चिकित्सा का प्रचार-प्रसार कर रहे थे. इन लोगों ने प्राकृतिक चिकित्सालय भी खोल लिए थे. इन लोगों में वेंकट चेलापति शर्मा भी थे जिन्होंने लुई कूने की जल चिकित्सा की पुस्तक का तेलुगु में अनुवाद तथा प्रकाशन किया. डा. विट्ठलदास मोदी ने इसी पुस्तक का हिंदी में अनुवाद करते हुए प्राकृतिक चिकित्सा के विभिन्न विषयों की  लगभग पच्चीस पुस्तकों की लाइन लगा दी. वर्ष 1949 में डा. कृष्णम राजू के शिष्य डा. बी वेंकट राव और उनकी पत्नी विजयालक्ष्मी ने गांधी नेचर क्योर कालेज और अस्पताल की स्थापना की. यह अस्पताल आज प्राकृतिक चिकित्सा का प्रशिक्षण भी दे रहा है. यहां बैचलर आफ नैचुरोपैथी और योगिक साइंस में डिग्री दी जाती है. यह अस्पताल उस्मानिया विश्वविद्यालय से संबद्ध है. यहां साढ़े चार साल का कोर्स है. आरोग्य मंदिर से भी पत्राचार द्वारा डाक्टर आफ नैचुरोपैथी की डिग्री दी जाती है. यहां विद्यार्थियों को पूरे साल घर पर ही निर्धारित कोर्स को पढऩा होता है और दो माह के व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए आरोग्य मंदिर, गोरखपुर में रहना पड़ता है. यहां यह उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी भी देश में प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाए जाने के पक्षधर थे. बी वेंकट राव, डा. विजयालक्ष्मी और डा. विट्ठलदास मोदी ने किसी न किसी रूप में महात्मा गांधी से ही देश में प्राकृतिक चिकित्सा शुरू करने की प्रेरणा पाई.

इसके अलावा अब देश में दिल्ली, जयपुर, बैंगलोर, पुणे आदि के अलावा कई जगह प्राकृति चिकित्सालय खुलते जा रहे हैं. भोपाल में भी संत हिरदाराम प्राकृतिक चिकित्सालय (50 बिस्तर) का सफलतापूर्वक चल रहा है. यहां भी प्राकृतिक चिकित्सा का कोर्स चलता है. इसके अलावा डा. गांगुली प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग अनुसंधान केंद्र कोटरा में चल रहा है जहां प्राकृतिक चिकित्सा की जाती है.

                          प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांत
               
प्राकृतिक चिकित्सा के तीन बुनियादी सिद्धांत हैं. यह सिद्धांत जर्मनी, अमेरिका, ब्रिटेन तथा भारत के 100 साल के प्रभावी प्राकृतिक चिकित्सा के बार-बार के प्रयोग, अमल के बाद सिद्ध रूप में हासिल हुए हैं.

सबसे पहला सिद्धांत है कि किसी भी बीमारी का कारण शरीर में कचरे  (विजातीय पदार्थ/टाक्सिन) का जमा होना है.

दूसरा सिद्धांत है कि शरीर स्वयं इस कचरे को बाहर फेंकने का प्रयास करता है. यह प्रयास सर्दी, जुकाम, बुखार, पीलिया जैसे साधारण या ह्दय रोग, डायबिटीज, लीवर, किडनी की खराबी जैसे किसी भी तीव्र रोग के रूप में हो सकता है. 

तीसरा सिद्धांत है कि शरीर में स्वयं स्वस्थ होने की ताकत है. इसे जीवनी-शक्ति के नाम से जाना जा सकता है.

मनुष्य के शरीर में यह कचरा गलत रहन-सहन, गलत आहार-विहार, गलत जीवनचर्या, कार्याधिक्य आदि से जमा हो जाता है. प्राकृतिक चिकित्सा इसी कचरे को चिकित्सा के विभिन्न तरीकों से शरीर से बाहर निकालती है. प्राकृतिक चिकित्सा में यह प्रयास तब तक जारी रहता है जब तक कि शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ न हो जाए. प्राकृतिक चिकित्सा के तरीकों में एनिमा, उपवास, आहार, मिट्टी, धूप, पानी, योगा, आदि का सहारा लिया जाता है. इन्हीं के समुचित प्रयोगों से शरीर को स्वस्थ कर दिया जाता है.

प्राकृतिक चिकित्सा के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं:


1.    सभी बीमारियों का कारण एक है तथा इसका इलाज भी एक है.
2.    शरीर की अस्वस्थता ही रोग है.
3.    रोग मित्र है न कि दुश्मन.
4.    प्रकृति स्वयं रोग निवारक है.
5.    रोग निवारण की शक्ति रोगी के स्वयं के अंदर है न कि दवाओं या डाक्टर के पास.
6.    प्राकृतिक चिकित्सा में रोगी को स्वस्थ किया जाता है, रोग का इलाज नहीं किया जाता.
7.    प्राकृतिक चिकित्सा में पूरे शरीर को स्वस्थ किया जाता है न कि शरीर के किसी एक रोग ग्रसित हिस्से को.
8.    प्राकृतिक चिकित्सा में आहार दवा है.
9.    प्राकृतिक चिकित्सा में रोगी को स्वयं ही धैर्य और लगन से लगना पड़ता है.


Wednesday 2 November 2011

रसोई गैस और डीजल भी महंगे होंगे




देश की जनता को एक बार फिर महंगाई से जूझना पड़ सकता है। डीजल व रसोई गैस के दामों में बढ़ोतरी किए जाने की संभावना है। डीजल और रसोई और गैस के दामों पर चर्चा के लिए पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी जीओएम की बैठक बुलाई है। कहा जा रहा है कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सरकार डीजल, एलपीजी और केरोसिन की कीमतों में वृद्घि कर सकती है।

गौरतलब है कि क्रूड ऑयल महंगा होने से तेल कंपनियां घाटा उठा रही हैं। इसी कारण दामों में वृद्धि की संभावना जताई जा रही है। दूसरी ओर पेट्रोल के दाम बढ़ाने पर ऑयल सेक्रेटरी जीसी चतुर्वेदी ने बुधवार को कहा है कि पेट्रोल के दाम बढ़ाने का फैसला तेल कंपनियां ही ले सकती है।

तेल कंपनियों के दबाव के बाद सरकार पेट्रोल के दाम 1.82 रुपये लीटर बढ़ा सकती है। इससे पहले 15 सितंबर को ही पेट्रोल के दाम 3.14 रुपये लीटर बढ़े थे। फिलहाल दिल्ली में पेट्रोल के दाम 66.84 रुपये लीटर है और अगर दाम बढ़ जाते हैं तो दिल्ली में पेट्रोल 68.66 रुपये लीटर होगा। पिछले एक साल में सरकार दस बार पेट्रोल के दाम बढ़ाकर आम आदमी कमर तोड़ चुकी है।

डीजल और रसोई गैस के दामों में बढोतरी करने से क्या आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रर्दशन पर असर पड़ेगा?





चीनी सीमा पर तैनात होंगे एक लाख भारतीय सैनिक



नई दिल्ली। भारतीय सेना का अरुणाचल प्रदेश में पर्वतीय सैन्यदल (माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स) की रक्षा प्रणाली को और सशक्त बनाने का प्रस्ताव जल्द ही मंत्रिमंडलीय रक्षा समिति के पास पहुंच जाएगा

सूत्रों के अनुसार मौजूदा सैन्य दल में और एक लाख सैनिक भर्ती करने पर 60,000 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होंगे।
एक बार समिति द्वारा अनुमोदित हो जाने के बाद अप्रैल तक 12वीं पंचवर्षीय योजना के लागू होने के दौरान इसके बजट से सम्बंधित मुद्दे भी निपटा लिये जाएंगे।

लेकिन दूसरी ओर लद्दाख के लिए 10,000 सैनिकों की डिविजन का मामला अधर में रह जाएगा, और उसके बदले सेना को सिर्फ 5,000 सैनिकों के इनफैंट्री ब्रिगेड से ही संतोष करना पड़ेगा।
सीएनएन-आईबीएन को सूत्रों से पता चला है कि तोपची सैनिकों में भी बढ़ोतरी नहीं होने का अंदेशा है। हालांकि, लद्दाख में टैंक रेजिमेंट की संख्या में वृद्धि होना तय है और इस सिलसिले में प्रगति हो रही है। इसके अलावा, निर्माणाधीन न्योमा हवाईक्षेत्र से इस इलाके की सैन्य गतिशीलता और सैन्यतंत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण सुधार होगा। कुछ मामलों में तो न्योमा में वायुसेना अपने सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमान भी तैनात करवाएगी।
सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल रवि दस्ताने ने कहा, “सड़कों की वजह से मुझे गतिशीलता मिलती है, नए सैन्य अड्डे मिलते हैं, सेना के निवास के लिए नए ठिकाने मिलते हैं और नए प्रशिक्षण क्षेत्र भी मिलते हैं। मेरा खयाल है कि इससे महत्त्वपूर्ण और कुछ नहीं हो सकता और हमें इसी पर ध्यान केंद्रीत करना चाहिए, हमें अपने सैनिकों को प्रशिक्षण देने की जरूरत है।”इस बीच रक्षा राज्य मंत्री पल्लम राजू ने चीन की ओर से किसी भी खतरे के संकेत का खंडन करते हुए कहा है कि मैं नहीं समझता कि हमें खासतौर से चीनी सीमा के पास सावधान रहने की जरूरत है। जहां तक हमारी सुरक्षा को लेकर खतरों की बात है, तो हम इसके लिए पर्याप्त कदम उठा रहे हैं।”

Saturday 29 October 2011

कब समाप्त होगी अमावस्या की काली रात ?



 - अरविंद शीले

हम भारतीय सचमुच बड़े ही धार्मिक हैं। बारह महीनों में हजारों पर्व मनाते हैं। करें भी क्या ? तैंतीस करोड़ तो हमारे देवी-देवता ही हैं। ऐसा पृथ्वी के और किसी हिस्से में नहीं होता। धर्म निरपेक्ष हमारे देश में असंख्य धर्म के कोटि-कोट देवताओं की पूजा, हम वर्ष भर कई-कई रूपों करते रहते हैं। देश में हो रहे संप्रदायवाद के तांडव और अलगाववाद की गर्जनाओं के बाद तो अपने-अपने धर्म के सभी संवेदनशील पहलू हमें छूने लगे हैं, सिवाय मानव धर्म के। धर्म जानने की, करने चीज थी। हमने अपने-अपने धर्म को कट्टर रूप में केवल मानना शुरू कर दिया। हमारा राजनैतिक धर्म भी धराशायी हो गया है। तभी तो हम कटोरा लेकर कभी हांगकांग कभी अमेरिका और कभी थाईलैंड पहुंच जाते हैं। देश-विदेश से पैसा बटोरकर भ्रष्टाचार करते हैं। अपना और स्विस बैंकों का पेट भरते हैं। कहीं भी हमें अपमान का, स्वाभिमान का बोध नहीं होता और जो इसका बोध कराए उस पर सभा में चप्पल फेंकते हैं।

सत्ता और धर्म का लोभ
अपने-अपने धर्म के देवी-देवताओं को छाती से चिपकाकर हम धार्मिक पहचान तो बनाते रहे परंतु धर्म के नाम पर अपने भाइयों का गला काटने से भी नहीं चूके। यदि हम वास्तव में धार्मिक हो गए हैं तो सत्ता और धर्म का लोभ हमसे क्यों नहीं छूट रहा है? धार्मिक व्यक्तियों को सत्ता, अर्थ, लोभ, मोह से क्या मतलब? परंतु हमने धर्म को नहीं, धर्म के मुखौटे को अंगीकार कर लिया है। तभी तो कुर्सी दिखी नहीं कि सब धर्म गायब। रुपया दिखा नहीं कि सब धर्म गायब। दिखना कुछ चाहते हैं, करना कुछ। धर्म हमें नरम, लचीला, विनयशील, करुणामय बनाता है। लेकिन हो रहा है बिलकुल उल्टा कि हम कट्टरपंथी बनते जा रहे हैं। मजाल कि कोई हमारे धर्म का एक कंकर भी इधर से उठाकर उधर रखा दे। मजाल कि कोई हमारे धार्मिक दायरे की सीमा रेखा में अपने पांव तो रख दे और यदि किसी इस या उस ने कुछ ऐसा-वैसा कर दिया तो कत्ले आम मच जाएगा पूरे देश में। हमने कभी नहीं सोचा कि देश तरक्की की मंजिल पर पहुंचे। देश धन-धान्य से परिपूर्ण हो। कोई भूखा न सोए और जब जागे तो काम मिले। शिक्षा-चिकित्सा की समुचित व्यवस्था हो, ऐसा कुछ नहीं सोचते। सोचते हैं तो केवल यह कि हमारे धार्मिक झंडों का रंग और गहरा कैसे हो? हमारे धार्मिक नारों में तीव्रता कैसे आए? हमारे धार्मिक संवाद धारदार कैसे बनें? और इसी तरह की विसंगतियों के साथ आ जाते हैं त्यौहार। दारिद्रय से भरपूर, शंकित मन से परंपराओं का निर्वाह करने के लिए मजबूर हो जाते हैं हम। सुरसा सी बढ़ती महंगाई ने तो वैसे ही त्यौहारों का रंग फीका कर दिया है परंतु देश के दहशत भरे माहौल ने तो त्यौहारों को बिलकुल औपचारिक ही बना डाला है। संप्रदायवाद,अलगाववाद, आतंकवाद, भ्रष्टाचार के प्रचण्ड दावानल के समक्ष नन्हा दीप जलाकर दीपावली मनाना औपचारिकता नहीं है तो क्या?

पूजा में भक्ति का अभाव
वैसे भी आज की पूजाओं में धर्म नहीं होता, भक्ति नहीं होती, होता है हुल्लड़ और मजाक और मजा। एक जमाने में गले में गमछा लपेट कर विनम्रता से  चंदा लिया जाता था, अब थोड़ी उन्नति हुई है, छुरी-छुरे और गाली-गलौच का खेल खेला जाता है। रास्ते में गाड़ी रोककर चंदा वसूला जाता है। थाने और पुलिस वाले कहते हैं, डरने की जरूरत नहीं हम किसलिए हैं? जबरदस्ती चंदा वसूलने की कोशिश करने पर हमें इत्तिला दीजिए, हम आपकी रक्षा करेंगे। परन्तु कौन किसलिए है और कहां है, कोई नहीं जानता। दीवाली का सबसे बड़ा मजा है शोर-शराबे और धूम-धड़ाके का। पटाखों और बमों की आवाज से मुहल्ले के कुत्ते कांपते हैं, पेड़ पर बैठै पक्षी भाग जाते हैं। रोगियों के कान फटने लगते हैं। राहगीर घायल होकर अस्पताल भागते हैं। उत्पात बढ़ता ही जा रहा है। आदमी के संयम का वाल्व ही बेकार हो गया है। विदेशी हमें देखकर हंसते हैं और हम अपने आप को देखकर हंसते हैं। सिर्फ एक प्रश्न अपने से बार-बार पूछते हैं कि शास्त्रों में कहा गया है कि आहार निद्रा भय मैथुनच:। सामान्य येतत पशुर्भिर्नराशाम्। धर्मोहि तेषर्मेधि को विशेषे। ना: पशुभि: समाना। आहार, निद्रा, भय और मैथुन पशुओं में भी है और मनुष्य में भी। तब मनुष्य और पशु में क्या अंतर रह जाता है? अंतर रहता है सिर्फ धर्म का, विवेकशील धर्म का, ज्ञानशील धर्म का।

आशा और विकास की किरणें
दीपावली आती है अमावस्या की काली, अंधकार की चादर ओढ़े। दहशत और मायूसी के आजम में बाहर द्वार पर दीप जला नहीं सकते। भीतर अन्तस् का दीप जलाना तो और कठिन है। उसके लिए साधक चाहिए, साधना चाहिए, उपासना चाहिए। देश के विध्वंसक माहौल में सब साधनाएं समाप्त हो गई हैं। सिर्फ बची रह गई है तो शव-साधना। रोज-रोज के बम विस्फोटों और बारूदी सुरंगों के फटने से प्राप्त लाशों की जलती चिताओं की लपटों में हम आशा और विकास की किरणें ढूंढ रहे हैं। धधकती चिताओं के धुंए में हम भाग्य और भविष्य देख रहे हैं और इस सबके बावजूद आकाश छूती चिता की लपटों के समक्ष एक नन्हा दीपक जलाकर त्यौहार मनाने को भी बाध्य हैं हम।

चारों ओर चीत्कार
आज साधकों के गोत्र बदल गए। समाज अब सहजिया संप्रदाय के हाथ में है। निर्माण की शक्ति है, ध्वंस की शक्ति भी शक्ति है, बिगाडऩे की शक्ति भी शक्ति है। चारों तरफ यह उल्लासित चीत्कार सुनाई देता है, जला दो, नष्ट कर दो, उड़ा दो। रहनुमाओं की नजरें बदल गईं। समाज नीली-पीली टोपी वालों की मुद्रा में कैद हो गया है। जिनके पास शक्ति है, पैसा है, रसूख है, धार्मिक अंध-विश्वासों के जरिए समाज को बरगलाने की ताकत है, उनकी दीवाली है, बाकी सबका दीवाला। यह हमारे देश में ही संभव है कि कुछ मु_ी भर लोग अरबों रुपए, रोटी, कपड़े, मकान और रोजगार के लिए तरसते करोड़ों लोगों की उदास आंखों के सामने बम, फटाखे, फुलझड़ी में उड़ा देते हैं।

चारों ओर अंधकार
चारों ओर अंधकार फैला हुआ है। गांव-गांव अंधकार फैला हुआ है। फसल भरे खेतों में राजनैतिक दलों के कौआ हांकने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है। बाढ़ आती रहती है और जब वह नहीं आती तो आता है सूखा। थोड़े से पैसे के लोभ में दलालों के निर्देश के मुताबिक गांव का आदमी शहर में राजनैतिक जुलूस में भाड़े का टट्टू बन जाता है। पटरियों पर बैठ कर ट्रेनें रोक दी जाती हैं। हड़तालें और देश बंद करके हम खुश होते हैं। पंचायतें राजनीतिबाजों का अड्डा बन गई हैं। हत्यारे, लुटेरे घूम रहे हैं सड़कों पर। बहु-बेटियों का सड़कों पर घूमना बंद हो गया है। लुटेरे चैन झपट रहे हैं। पत्नी के साथ सोए पति को काट-काट कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाता है।

कहां गया आनंद और उल्लास
दीपावली एक समय गांव का उत्सव होता था, फसल का उत्सव था यह, प्राचुर्य का उत्सव था। गांव को दीपकों से सजाया जाता था और दीवाली के पहले दिन दारिद्रय को भगाया जाता था ताकि अगले दिन प्रचुरता की देवी लक्ष्मी का स्वागत किया जा सके। लेकिन अब गांव में आनंद-उल्लास कहा है? वे सब तो भाग कर शहर चले गए हैं और शहर का धर्म ही है कि वह हर चीज की आत्मा को मार डालता है, उसे कुरूप बना देता है। आजाद देश की सरकार गरीब आदमी को इतना भी मिट्टी का तेल नहीं दे पाई कि वह चिमनी ही जला सके। प्रकाश और प्राचुर्य का उत्सव तो अब शहरों में चला गया है। गरीब के काई लगे खपरैल के घर में तो चिमनी ही टिमटिमाती रहती है। दीपावली अब दीपकों से नहीं सजती। इस यंत्र-तंत्र युग में भी एक सेंटीमीटर वाली मोमबत्ती ही प्रकाश स्तंभ बनी हुई है। पैसे वालों के मकानों की दीवारें बिजली की झालरों से झिलमिलाती हैं, तरह-तरह की आकृति वाले दीपदानों में प्रकाश की बाढ़ उमड़ती रहती हैं। उनके घरों में दीपवली तो क्या, पूरे साल अंधकार का प्रवेश वर्जित रहता है। ये धनी लोग दीपावली की रात आकाश को आतिशबाजियों से आलोकित करने की क्षमता रखते हैं, जबकि गरीब के अंधेरे में डूबे हुए घरों में चूल्हा तक नहीं जलता।

भूखा पेट, काम की जुगाड़
दिनभर की मेहनत के बाद घर लौटा आदमी सख्त जमीन पर भूखे पेट उकड़ूं पड़ा अंधकार में पूरी रात काट देता है। उसके आश्रय स्थल को रोशनी से जग-मग कर दे इसका कोई साधन उसके पास नहीं है। भूखा पेट लिए सुबह काम की जुगाड़ की कोशिश करता यह आदमी रोज ही अमावस्या की रातें भुगतता है। उसके जीवन में कब आएगी पूर्णिमा या कहें जग-मग दीपों वाली रात? कह नहीं सकते। कौन देख रहा है उसकी ओर? कौन सोच रहा है उसकी? उसके जीवन से सदा-सदा के लिए कब खत्म होगी अमावस्या की काली रात?

मूर्खों के देश में धूर्तों का राज
बहुत युगों से धर्म तो बहुत हुआ। असंख्य मंदिर हैं। तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का नाम, जाप और कीर्तन चल रहा है पर तब भी मनुष्य की यह दशा क्यों? लगभग पशु जैसी उसकी स्थिति है। सारे देश में छछूंदर कीर्तन हो रहा है। मूर्खों के देश में धूर्तों का राज है। इसका मतलब यही है कि धर्म का लोप हो गया है। चारों और प्रकाश की जगमगाहट है, बैंड बज रहे हैं, बम फूट रहे हैं, आकाश आतिशबाजी से चकाचौंध है, भाषण हो रहे हैं, योजनाएं बन रही हैं। और इधर धर्महीन मनुष्य के जिम्मे सिर्फ दो कर्म रह गए हैं- आहार (यदि जुटे), निद्रा (यदि आए)।